समाज सेवा आज की आवश्यकता

यश्चकार न शासक कर्तुं शश्रे पादमंगुरिम चकार भद्रमस्मभ्यमात्मने तपेनं तु सः। अथर्ववेद(4—18—6) अर्थात् “जिसने अपने और दूसरों के लिये सामर्थ्य होने पर भी कल्याण, सुख-सम्पादन का कोई कार्य नहीं किया उसने मानो स्वयं अपने हाथ और पैरों को काट डाला। हमारे यहां एक मान्यता है कि मनुष्य योनि अनेक योनियों से गुजरने के बाद मिलती है। मान्यता चाहे जो भी हो, परन्तु यह सत्य है कि समस्त प्राणियों में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले समस्त प्राणियों की तुलना में मनुष्य को अधिक विकसित मस्तिष्क प्राप्त है जिससे वह उचित-अनुचित का विचार करने में सक्षम होता है। पृथ्वी पर अन्य प्राणी पेट क...