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समाज सेवा आज की आवश्यकता

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यश्चकार न शासक कर्तुं शश्रे पादमंगुरिम चकार भद्रमस्मभ्यमात्मने तपेनं तु सः।                                                                                                           अथर्ववेद(4—18—6) अर्थात्        “जिसने अपने और दूसरों के लिये सामर्थ्य होने पर भी कल्याण, सुख-सम्पादन का कोई कार्य नहीं किया उसने मानो स्वयं अपने हाथ और पैरों को काट डाला। हमारे यहां एक मान्यता है कि मनुष्य योनि अनेक योनियों से गुजरने के बाद मिलती है। मान्यता चाहे जो भी हो, परन्तु यह सत्य है कि समस्त प्राणियों में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले समस्त प्राणियों की तुलना में मनुष्य को अधिक विकसित मस्तिष्क प्राप्त है जिससे वह उचित-अनुचित का विचार करने में सक्षम होता है। पृथ्वी पर अन्य प्राणी पेट क...

खेलो इंडिया एक पहल खेल की ओर

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जिला स्तरीय युवा संसद हेतु खेलो इंडिया पर मेरा अभिमत। (28 जनवरी गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय हरिद्वार) जैसे की हम सभी जानते है हमारा देश कुछ खेलो में अन्य देशों की तुलना में बहुत पीछे है। अगर ग्रामीणों की बात करे तो बहुत ही कम खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक  पहुंच पाते है जितने भी खिलाड़ी राष्ट्रीय स्तर तक पहुंचे उन्होंने इतिहास रच दिया चाहे वह पीटी ऊषा हो या मेरीकॉम। कुछ यही हाल शहरी क्षेत्र के खिलाड़ियों का है यहां से भी कम खिलाड़ी उभर कर आ रहे हैं। जिसका सबसे बड़ा कारण है उनको मिलने वाली सुविधाओं का अभाव(चाहे खेल मैदान हो या अच्छे ट्रेनिग कोच) एक और प्रमुख कारण परिवार की आर्थिक स्थिति भी है। इन सब कारणों से देश में खेल को लेकर खिलाड़ियों कि स्थिति खराब होती जा रही थी। ओलंपिक 2024 को ध्यान में रखते हुए युवा कल्याण और खेल मंत्रालय द्वारा 2017 में खेलो इंडिया नामक कार्यक्रम लाया गया। जिसका मुख्य उद्देश्य गाव से लेकर शहर तक और गली से लेकर सड़क तक के प्रतिभावान खिलाड़ियों का चयन कर उन्हें राष्ट्र के हेतु खेलने के लिए प्रोत्साहित करना है। इस योजना के द्वारा भारत सरकार अगले 5 वर्ष ...

कालेज के तीन साल भाग 5

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नमस्कार मित्रो ! हम पढ़ रहे   है    देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार   के छात्र    गौरव कलौनी   की लिखी कहानी जिसका नाम है ,   कालेज के तीन साल  | यह कहानी वास्तिविक है   उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के   तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है | अब तक   हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया | वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | मुलाकातो के उस दौर में कुछ   और   दोस्तों का मिलना हुआ | साथ ही कुछ लोगो से अनबन भी हुई लेकिन एक ऐसा पल भी उनकी जिन्दगी में आया जिसने उन्हें दीवाना बना दिया | और उनकी दोस्ती की लिस्ट में कुछ अन्य नाम जुड़े जो थे तो अनजाने होने के बाद भी पारिवारिक लेकिन लग रहे थे | उन्होंने अपने प्रिय खेल को भुनाते हुए नये खेल को अपने जीवन में उतारा, नियमित रूप से अभ्यास करने लगे | जिस दिन उनका परीक्षा परिणाम आया वह हैरान रह गये जहा एक तरफ 65 % वाला खुश है तो कोई 80 % लाकर भी द...

कालेज के तीन साल भाग 4

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नमस्कार मित्रो ! हम पढ़ रहे  है   देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार  के छात्र    गौरव कलौनी   की लिखी कहानी जिसका नाम है ,   कालेज के तीन साल  | यह कहानी वास्तिविक है  उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के  तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |  अब तक  हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | मुलाकातो के उस दौर में कुछ  और  दोस्तों का मिलना हुआ | साथ ही कुछ लोगो से अनबन भी हुई लेकिन एक ऐसा पल भी उनकी जिन्दगी में आया जिसने उन्हें दीवाना बना दिया | और उनकी दोस्ती की लिस्ट में कुछ अन्य नाम जुड़े जो थे तो अनजाने होने के बाद भी पारिवारिक लेकिन लग रहे थे | उन्होंने अपने प्रिय खेल को भुनाते हुए नये खेल को अपने जीवन में उतारने लगे जो उन्हें बहुत कुछ सिखाने वाला था | अब आगे..... पहला भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:-  भाग 1   दूसरा भाग पढने के लिए य...

कालेज के तीन साल भाग 3

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नमस्कार मित्रो ! हम पढ़ रहे  है   देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार  के छात्र    गौरव कलौनी   की लिखी कहानी जिसका नाम है ,   कालेज के तीन साल  | यह कहानी वास्तिविक है  उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के  तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |  अब तक  हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | मुलाकातो के उस दौर में कुछ  और  दोस्तों का मिलना हुआ | साथ ही कुछ लोगो से अनबन भी हुई लेकिन एक ऐसा पल भी उनकी जिन्दगी में आया जिसने उन्हें दीवाना बना दिया | और भी बहुत कुछ घटित हुआ उनके साथ |    अब आगे..... पहला भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:-  भाग 1   दूसरा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:-  भाग 2       शुरू करते है कहानी का अगला भाग (भाग 3).... इसी बीच हम अब भी कुछ उधेड़बुन मे लगे हुए थे... कि 6  महिनों का ...

कालेज के तीन साल भाग 2

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नमस्कार मित्रो ! हम पढ़ रहे  है   देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार  के छात्र    गौरव कलौनी   की लिखी कहानी जिसका नाम है ,   कालेज के तीन साल  | यह कहानी वास्तिविक है  उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के  तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |  पिछले  भाग   मे हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था |  अब आगे..... पहला भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:-  भाग 1     शुरू करते है कहानी का अगला भाग (भाग 2).... मुलाकातों के उस दौर में... योगा की सामूहिक कक्षाओं के दौरान... अपने अग्रज पर टिप्पणी करने पर जब मार पीट की नौबत आ गई थी तो... फिर से एक भाई ने बीच-बचाव कर मामला सुलझाया...  लंबी कद काठी का... दुबला पतला सा... सर पर टोपी लगाये...   दढ़ियल ... किसे पता था कि उससे एक ऐसा रिश्ता बन जाएगा जो कई मत भेदो (वैचारिक मतभेद) और...

कालेज के तीन साल भाग 1

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नमस्कार मित्रो आज  हम पढ़ते है   देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार  के छात्र    गौरव कलौनी की लिखी कहानी जिसका नाम है ,  कालेज के तीन साल | यह कहानी वास्तिविक है  उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के  तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है | आइये शुरू करते है.... एक मस्त-मलंग सा, अनगढ़ सा बालक 3 साल पहले एक अंजान से सफर पर निकल पड़ा था | सफर कुछ ऐसा जो बिलकुल ही भिन्न था | रहन-सहन में भिन्न... बोल-चाल में भिन्न... खान-पान में भिन्न... हर प्रकार से उसकी पिछली जिन्दगी से भिन्न होने वाला था ये सफर.. या यूँ कहें कि एक आजाद आवारा परिंदे को जंजीरों  में कैद किया जाने वाला था... वो कैद जो किसी ने नहीं चुनी उसके लिए बल्कि उसने उन जंजीरों को स्वयं से चुना था... या हो सकता है कि कहीं बहुत सूक्ष्म में कोई अंजान सी शक्ति उसे उस सफर पर खींचती चली जा रही थी... उसकी समझ इतनी विकसित नहीं थी कि वह यह सब समझ पाता.... वहाँ जाने के बाद माँ-बाप का परेशान चेहरा देख कर (माँ-बाप परेशान थे क्योंकि वे वाकिफ थे अपने बेटे के बंजारा मिज़ाज़ी से, वे सोच रहे थे कि उनका बेटा इ...