समाज सेवा आज की आवश्यकता
यश्चकार न शासक कर्तुं शश्रे पादमंगुरिम चकार भद्रमस्मभ्यमात्मने तपेनं तु सः।
अथर्ववेद(4—18—6)
अर्थात्
“जिसने अपने और दूसरों के लिये सामर्थ्य होने पर भी कल्याण, सुख-सम्पादन का कोई कार्य नहीं किया उसने मानो स्वयं अपने हाथ और पैरों को काट डाला।
हमारे यहां एक मान्यता है कि मनुष्य योनि अनेक योनियों से गुजरने के बाद मिलती है। मान्यता चाहे जो भी हो, परन्तु यह सत्य है कि समस्त प्राणियों में मनुष्य ही सर्वश्रेष्ठ है। इस पृथ्वी पर जन्म लेने वाले समस्त प्राणियों की तुलना में मनुष्य को अधिक विकसित मस्तिष्क प्राप्त है जिससे वह उचित-अनुचित का विचार करने में सक्षम होता है। पृथ्वी पर अन्य प्राणी पेट की भूख शान्त करने के लिए परस्पर युद्ध करते रहते हैं और उन्हें एक-दूसरे के दुःखों की कतई चिन्ता नहीं होती। परन्तु मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और इस समाज के बिना उसका रहना कठिन ही नहीं असंभव है। कोई भी समाज तभी खुशहाल रह सकता है जब उसका प्रत्येक सदस्य या व्यक्ति दुःख दर्द से बचा रहे। किसी भी समाज में यदि चार लोग सुविधा-सम्पन्न हों और शेष कष्टमय जीवन व्यतीत कर रहे हों, तो ऐसा समाज उन्नति नहीं कर सकता। पीड़ित लोगों के कष्टों का असर संपूर्ण समाज पर पड़ता है । समाज के चार सम्पन्न लोगों को पास-पड़ोस में यदि कष्टों से रोते-बिलखते लोग दिखाई देंगे, तो उनके मन-मस्तिष्क पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा । उनके मन में पीड़ित लोगों की सहायता करने की भावना उत्पन्न हो या न हो, परन्तु पीड़ित लोगों के दुःखों से उनका मन अशान्त अवश्य होगा । मानव होने के नाते जब तक हम एक-दूसरे के दुःख-दर्द में साथ नहीं निभाएँगे तब तक इस जीवन की सार्थकता सिद्ध नहीं होगी । वैसे तो हमारा परिवार भी समाज की ही एक इकाई है, किन्तु इतने तक ही सीमित रहने से सामाजिकता का उद्देश्य पूरा नहीं होता । हमारे जीवन का अर्थ तभी पूरा होगा जब हम समाज को ही परिवार माने । समाज के बिना मानव का पूर्ण रूप से विकास होना सम्भव ही नहीं है । इसलिए मानव को कदम कदम पर समाज की आवश्यकता होती है। मनुष्यता का लक्षण यही है कि प्रत्येक व्यक्ति अपने से भी पहले अपने समाज का ध्यान रखे। अगर हम अपने समाज के उत्थान का, उसकी प्रगति का ख्याल रखेंगे और उसकी भलाई के लिये तन, मन, धन से प्रयत्नशील रहेंगे तो सबकी भलाई के साथ हमारी भलाई तो अपने आप हो ही जायगी और साथ ही हमको समाज सेवा का सुयश-पुण्य भी प्राप्त होगा। इसलिये जो व्यक्ति साधन, अवसर पाकर भी समाज की भलाई के लिये सच्चे हृदय से सेवा नहीं करता उसे हाथ पैर कटा हुआ अर्थात् इस धरती पर बोझ ही समझा जाता है।
समाज-सेवा या दूसरों के उपकार के लिये यह कोई आवश्यक बात नहीं कि मनुष्य धन द्वारा ही दूसरों की सहायता करे। धन तो बाहरी साधन है और उसका उपयोग समयानुसार बदला करता है। ऐसे भी अवसर आते हैं जब कि करोड़ों रुपया पास में रखा रहने पर भी मनुष्य एक रोटी अथवा एक गिलास पानी के लिये तरसता रह जाता है। इसलिए सच्ची सेवा और सहायता के उपकरण तो तन और मन ही को मानना चाहिये। ये ही वास्तव में हमारी सम्पत्ति हैं और इनके द्वारा सेवा करने से किसी को कोई कभी नहीं रोक सकता। इसके लिये अगर आवश्यक है तो यही कि हमारे हृदय में दूसरों की सहायता-सेवा करने की सच्ची भावना हो। आज तक जितने बड़े-बड़े महापुरुष हुये हैं जिनका नाम इतिहास में लिखा गया है और अब भी समय समय पर हम गौरव के साथ जिनका स्मरण करते रहते हैं, जिनकी जयन्तियाँ मनाते रहते हैं, इनमें शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने धन द्वारा प्रतिष्ठा अथवा श्रद्धा प्राप्त की हो। महापुरुषों कि पहचान यही है कि वे दूसरों के उपकारार्थ के लिए अपने तन,मन और यहां तक कि अपने प्राणों को भी उत्सर्ग कर देते हैं। हम जिस समाज में रहते हैं उन्हीं के बीच हम खाते हैं, पीते हैं, जीते हैं व रहते है हमे निस्वार्थ भाव से समाज के लोगों की सेवा, मदद, हित करना चाहिए इससे पूरे राष्ट्र की व्यवस्था मे सुधार किया जा सकता है। समाज सेवा के द्वारा सरकार और जनता दोनों की आर्थिक सहायता की जा सकती है । पड़ोसियों की सेवा करना भी समाज सेवा ही है । आज हमारे देश का भविष्य युवाओं पर निर्भर है, अतः समाज की सेवा करना हर युवा का कर्तव्य है । समाज के सेवकों का यह कर्तव्य है कि वे सच्चे दिल से समाज की सेवा करें । सच्चे हृदय से की गयी समाज सेवा ही इस देश व इस पूरे संसार व समाज का कल्याण कर सकती है। जीवन-पथ पर प्रत्येक व्यक्ति को लोगों के सहयोग की आवश्यकता पड़ती है । एक-दूसरे के सहयोग से ही मनुष्य उन्नति करता है । परन्तु स्वार्थी प्रवृति के लोग केवल अपने हित की चिन्ता करते हैं । उनके हृदय में सम्पूर्ण समाज के उत्थान की भावना उत्पन्न नहीं होती । ऐसे व्यक्ति समाज की सेवा के अयोग्य होते हैं ।
वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को हम जितना अधिक से अधिक विस्तार देंगे, उतनी ही समाज में सुख-शांति और समृद्धि फैलेगी । मानव होने के नाते एक-दूसरे के काम आना भी हमारा प्रथम कर्तव्य है । हमें अपने सुख के साथ-साथ दुसरे के सुख का भी ध्यान रखना चाहिए । अगर हम सहनशीलता, संयम, धैर्य, सहानुभूति, और प्रेम को आत्मसात करना चाहें तो इसके लिए हमें संकीर्ण मनोवृत्तियों को छोड़ना होगा । धन, संपत्ति और वैभव का सदुपयोग तभी है जब उसके साथ-साथ दूसरे भी इसका लाभ उठा सकें । आत्मोन्नति के लिए ईश्वर प्रदत्त जो गुण सदैव हमारे साथ रहता है वह है सेवाभाव, समाज सेवा । जब तक सेवाभाव को जीवन में पर्याप्त स्थान नहीं दिया जाएगा तब तक आत्मोन्नति का मार्ग प्रशस्त नहीं हो सकता ।
किसी ने कहा है-
"जैसी करनी वैसी भरनी"
अर्थात जो जैसा करेगा वैसा ही भरेगा अर्थात पायेगा। इसलिए अच्छा कीजिए और अच्छा पाइए। अगर अच्छा न भी मिले तो एक चीज तो सुनिश्चित है आपको आत्मशांति जरूर मिलेगी।
आज के समय में समाज सेवा के ऊपर कोर्सेस भी किए जाने लगे है जो कुछ हद तक समाज सेवा का भाव मनुष्य के अंदर जगा रहे हैं परन्तु कुछ लोग इसे व्यवसाय के रूप मे देख रहे है । ऐसे लोग समाज सेवा के नाम पर मेवा खा रहे है। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन सेवा भावना ही खत्म हो जायेगी जिसका दुष्परिणाम सम्पूर्ण समाज को भुगतना पड़ सकता है । आवश्यकता है जागरूकता की, जागरूकता कैसी लानी होगी ? जागरूकता " निष्काम भाव से सेवा " की लानी होगी ताकि व्यक्तित्व परिष्कार के साथ-साथ समाज का भी विकास हो सके।
समाज सेवा किस प्रकार करे -
-आप एनजीओ या एक समूह का गठन करे जिस के माध्यम से आप निष्काम भाव से सेवा कर्म करे ।
-आप लोगो में समाज सेवा के फायदे बताए इस हेतु आप अपने स्तर पर हर संभव प्रयास कर सकते है
जैसे - social media के माध्यम से , दीवार लेखन के माध्यम से, जागरूकता अभियान चलाकर और भी अन्य माध्यम हो सकते है।
-भूखे को भोजन और प्यासे को पानी देना भी समाज सेवा ही है।
-गर्मियों में पक्षियों हेतु उचित व्यवस्था बनाकर पानी रखना भी एक प्रकार से समाज सेवा ही है।
-ठंड में गरीबों को गर्म कपड़े बाटना और रात में अलाव जलाना। गर्मियों में प्याऊ चलाना या घर के बाहर मटके में ठंडा पानी रखना भी समाज सेवा के ही अन्तर्गत आता है।
समाज सेवा के लिए माध्यम कई हो सकते है बस जरूरत है आपको कदम बढ़ाने की।
समाज सेवा करने से आपके पुण्य तो बढ़ेगे ही साथ ही जरूरतमंदो को सहायता भी मिलेगी। समाज सेवा के द्वारा आप अपना ही नहीं अपने परिवार का, अपने समाज का, अपने गांव/शहर का और अपने देश का मान सम्मान बढ़ा रहे हैं। समाज सेवा से आज के समय में कई लोगो के जीवन परिवर्तित हो गए है तो क्यों ना हम भी संकल्प ले कि हम भी समाज सेवा करेगे और दूसरो को भी प्रेरित करेगे।
- नरेन्द्र माकोड़े
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