कालेज के तीन साल भाग 3
नमस्कार मित्रो !
हम पढ़ रहे है देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के छात्र गौरव कलौनी की लिखी कहानी जिसका नाम है , कालेज के तीन साल | यह कहानी वास्तिविक है उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |
अब तक हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | मुलाकातो के उस दौर में कुछ और दोस्तों का मिलना हुआ | साथ ही कुछ लोगो से अनबन भी हुई लेकिन एक ऐसा पल भी उनकी जिन्दगी में आया जिसने उन्हें दीवाना बना दिया | और भी बहुत कुछ घटित हुआ उनके साथ |
हम पढ़ रहे है देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के छात्र गौरव कलौनी की लिखी कहानी जिसका नाम है , कालेज के तीन साल | यह कहानी वास्तिविक है उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |
अब तक हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | मुलाकातो के उस दौर में कुछ और दोस्तों का मिलना हुआ | साथ ही कुछ लोगो से अनबन भी हुई लेकिन एक ऐसा पल भी उनकी जिन्दगी में आया जिसने उन्हें दीवाना बना दिया | और भी बहुत कुछ घटित हुआ उनके साथ |
इसी बीच हम अब भी कुछ उधेड़बुन मे लगे हुए थे... कि 6 महिनों का सत्र खत्म होने को आ गया था... अब भी कुछ नियम कानून समझ के परे थे... लेकिन कुछ लाजवाब मित्रों के साथ छात्रावास की जिन्दगी बेहतरीन कट रही थी...
भले ही एक सत्र पूरा हो गया था एक और पात्र से भेंट होना बचा था... छोटी कद-काठी, सुर्ख लाल आँखें, गहरा रंग... और काफी हद तक मिलनसार मित्र...नाम तो तुम जान ही रहे हो...... और खबरों के आदान प्रदान में महर्षि नारद को मात दे दे... कुल मिला कर गजब के व्यक्ति |
भले ही एक सत्र पूरा हो गया था एक और पात्र से भेंट होना बचा था... छोटी कद-काठी, सुर्ख लाल आँखें, गहरा रंग... और काफी हद तक मिलनसार मित्र...नाम तो तुम जान ही रहे हो...... और खबरों के आदान प्रदान में महर्षि नारद को मात दे दे... कुल मिला कर गजब के व्यक्ति |
प्रथम सत्र के खत्म होने के बाद छात्रावास से अवकाश लेकर घर की ओर चल दिए... लेकिन न जाने क्यों वापस घर जाने को जी नहीं चाहता था |
खैर किसी तरह वो छुट्टियाँ ख़त्म हो गयी... और फिर से यहाँ का सफर शुरू हो गया...
एक बहुत ही रोमांचक करने वाली घटना याद आती है... एक दिन जब हम मुकुल देव जी और शर्मा जी के साथ विश्वविद्यालय से बाहर भ्रमण के लिए गए थे तो... वापसी के समय कुछ देर हो गई थी... और प्रवेश द्वार पर प्रवेश पत्र में उपस्थिति दर्ज कराने के बाद प्रवेश मिलता था... देर से आने वाले छात्रों को छात्रावास अधीक्षक का सामना करना होता था... तो उस भयावाह मंजर से बचने के लिये हमने कुछ होशियार बनने की सोची और प्रवेश पत्र को चौकीदार की नजर बचा कर कुर्ते मे छुपा लिया... पर अफसोस... चौकीदार मेरी यह चालाकी भाँप गया... और हम पकड़े गए... गम यह नहीं था कि हम पकड़े गए थे... बल्कि इसलिए था कि अब शर्मा जी और मुकुल भाई हमारी लेने वाले थे... कमरे पर पहुंचने से ही पहले व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ शुरू हो गई थी... हम भी चुपचाप सुने जा रहे थे... और अपनी सारी झेंप एक बेजान पानी की बोतल पर निकाल रहे थे... मुकुल जी और शर्मा जी हमपर ऐसे टूट पड़े जैसे सदियों से इस इंतजार में बैठे हों और कह रहे हों कि 'आज सही फस गए हो बेटा'...
खैर दो बेजान बोतलें काट दी गई हमारे द्वारा... आँखों मे हलके आँसू थे... जुबान खामोश थी... और शर्मा जी के व्यंग्य् बाण लगातार छूट रहे थे... मेरी यह क्लास पूरे दो घंटे तक चली... तब मुकुल जी को हमारी स्थिति देखकर दया आ गई थी... सो स्थिति को भांपते हुए उनहोंने सभा स्थगित की... चलो जान छूटी...
एक बहुत ही रोमांचक करने वाली घटना याद आती है... एक दिन जब हम मुकुल देव जी और शर्मा जी के साथ विश्वविद्यालय से बाहर भ्रमण के लिए गए थे तो... वापसी के समय कुछ देर हो गई थी... और प्रवेश द्वार पर प्रवेश पत्र में उपस्थिति दर्ज कराने के बाद प्रवेश मिलता था... देर से आने वाले छात्रों को छात्रावास अधीक्षक का सामना करना होता था... तो उस भयावाह मंजर से बचने के लिये हमने कुछ होशियार बनने की सोची और प्रवेश पत्र को चौकीदार की नजर बचा कर कुर्ते मे छुपा लिया... पर अफसोस... चौकीदार मेरी यह चालाकी भाँप गया... और हम पकड़े गए... गम यह नहीं था कि हम पकड़े गए थे... बल्कि इसलिए था कि अब शर्मा जी और मुकुल भाई हमारी लेने वाले थे... कमरे पर पहुंचने से ही पहले व्यंग्यात्मक टिप्पणियाँ शुरू हो गई थी... हम भी चुपचाप सुने जा रहे थे... और अपनी सारी झेंप एक बेजान पानी की बोतल पर निकाल रहे थे... मुकुल जी और शर्मा जी हमपर ऐसे टूट पड़े जैसे सदियों से इस इंतजार में बैठे हों और कह रहे हों कि 'आज सही फस गए हो बेटा'...
खैर दो बेजान बोतलें काट दी गई हमारे द्वारा... आँखों मे हलके आँसू थे... जुबान खामोश थी... और शर्मा जी के व्यंग्य् बाण लगातार छूट रहे थे... मेरी यह क्लास पूरे दो घंटे तक चली... तब मुकुल जी को हमारी स्थिति देखकर दया आ गई थी... सो स्थिति को भांपते हुए उनहोंने सभा स्थगित की... चलो जान छूटी...
इसी बीच हमारी मुलाकात एक और अजूबे से हुई... अच्छी मजबूत कद काठी का व्यक्ति... वाक चतुर व्यक्ति...पहली बार ही उससे बात करके ऐसा लगा मानो कई बर्षों से एक दूसरे को जानते होंगे... और उसने हमें मुकुल जी को और शर्मा जी को कुश्ती के मैदान में आकर जुड़ने का प्रस्ताव रख दिया... उस वाक चतुर हर्षवर्धन मलिक की बातों में आकर हम कुश्ती के मैदान में जाने लगे... और इस तरह शुरू हुआ हमारा हैंडबाॅल से कुश्ती का सफर...
आगे की कहानी अगले भाग में...........
यह था कहानी का भाग 3 | आपको यह कहानी कैसी लगी बताइयेगा जरुर , जल्द ही मिलेगे कहानी के अगले चरण में |
पहला भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 1
दूसरा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 2
चौथा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 4
पांचवा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 5
आगे की कहानी अगले भाग में...........
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