कालेज के तीन साल भाग 2
नमस्कार मित्रो !
हम पढ़ रहे है देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के छात्र गौरव कलौनी की लिखी कहानी जिसका नाम है , कालेज के तीन साल | यह कहानी वास्तिविक है उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |
पिछले भाग मे हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | अब आगे.....
पहला भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 1
शुरू करते है कहानी का अगला भाग (भाग 2)....
मुलाकातों के उस दौर में... योगा की सामूहिक कक्षाओं के दौरान... अपने अग्रज पर टिप्पणी करने पर जब मार पीट की नौबत आ गई थी तो... फिर से एक भाई ने बीच-बचाव कर मामला सुलझाया... लंबी कद काठी का... दुबला पतला सा... सर पर टोपी लगाये... दढ़ियल... किसे पता था कि उससे एक ऐसा रिश्ता बन जाएगा जो कई मत भेदो (वैचारिक मतभेद) और मन मुटावों के बाद भी वैसा ही बना रहेगा...
हम पढ़ रहे है देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के छात्र गौरव कलौनी की लिखी कहानी जिसका नाम है , कालेज के तीन साल | यह कहानी वास्तिविक है उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |
पिछले भाग मे हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | अब आगे.....
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मुलाकातों के उस दौर में... योगा की सामूहिक कक्षाओं के दौरान... अपने अग्रज पर टिप्पणी करने पर जब मार पीट की नौबत आ गई थी तो... फिर से एक भाई ने बीच-बचाव कर मामला सुलझाया... लंबी कद काठी का... दुबला पतला सा... सर पर टोपी लगाये... दढ़ियल... किसे पता था कि उससे एक ऐसा रिश्ता बन जाएगा जो कई मत भेदो (वैचारिक मतभेद) और मन मुटावों के बाद भी वैसा ही बना रहेगा...
इसी बीच एक दिन अंग्रेज़ी की कक्षा के दौरान... छज्जे पर खड़ी एक लड़की पर नजर गई... और क्या कहते हैं आजकल की भाषा में... क्रश... हाँ क्रश हो गया उसपर... शर्मा जी को यह बात बताई... और फिर शुरू हुआ उसका नंबर निकलवाने की जद्दोजहद... बड़ी मेहनत के बाद उसका नंबर मिला... इतना मेहनत अगर परीक्षा के समय कर लेते तो आज दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश पा जाते... नंबर तो मिल गया था... पर अब बारी थी संपर्क कैसे करें? बहुत हिम्मत से व्टसऐप पर संदेश छोड़ दिया... और जवाब आने कि प्रतीक्षा करते रहे... जवाब आया... हू इस दिस... परिचय दिया हमने अपना... तो सामने से एक और सवाल दाग दिया गया... आपको ये नंबर कहाँ से मिला? हमने कहा बस मिल गया... कुछ बात करनी थी आपसे... जवाब आया कि कहिए... हमने झट से बोल दिया कि हम पसंद करते हैं आपको... तो सामने से जवाब आया कि... देखो हमारा एक मित्र है और अगर कोई हमारा प्रेमी होगा तो वही होगा... हमारे जहन में मानो एटम बम सा फूट गया... तभी सामने से एक और जवाब आया की... वी कैन बी फ्रेंड्स... खुशी का ठिकाना न रहा उस समय... हाँ कभी उस दोस्त से खुल कर तो बातें हुई नहीं लेकिन आमना सामना होने पर हमारा हैलो कहना और उसका मुस्कुराना आज भी याद है... और जलपानग्रह की चाय जलेबी को आज भी हमारा इंतजार है...
खैर... अब सब कुछ सही से चल रहा था... दिन भर कक्षाओं में व्यस्त रहना... और रात्रि कालीन प्रार्थना के बाद मिश्रा जी के कमरे पर सभाएं लगाना... जिन सभाओं में हंसी ठिठोली होती थी...
अपने सहपाठियों से भी अच्छा रिश्ता बन गया था... उनके साथ भी कमरे में लंबे-लंबे वाद विवाद चलते थे... तो कभी बिना सिर पैर के नाटक चलते थे...
एक दिन शाम को शर्मा जी और हम टहलते हुए कमरे की तरफ जा रहे थे... ऊपर से हो-हल्ले की आवाजें आ रही थी... एक सहपाठी मिला और बोला... भाई जल्दी चलो...वो पगला अपना हाथ काट दिया है... हम बिना कुछ सोचे समझे एकदम दौड़ पड़े... और कमरे मैं जाकर देखा तो पगला हाथ में चाकू लिए खड़ा है... 5-7 छात्र उसके आसपास खड़े हैं... लेकिन पास जाने कि हिम्मत नहीं कर पा रहे थे... क्योंकि पगला चाकू की नोंक उनके तरफ करके कह रहा था कि... साला कोई पास नहीं आना नहीं तो घोंप देंगे... उसी बीच हम बिना कुछ सोचे समझे घुस गये और पगले के हाथ से चाकू छीन कर दो लप्पड लगा दिए... हाथ में रूमाल बाँध कर दौड़ पड़े अस्पताल की तरफ...
अपने सहपाठियों से भी अच्छा रिश्ता बन गया था... उनके साथ भी कमरे में लंबे-लंबे वाद विवाद चलते थे... तो कभी बिना सिर पैर के नाटक चलते थे...
एक दिन शाम को शर्मा जी और हम टहलते हुए कमरे की तरफ जा रहे थे... ऊपर से हो-हल्ले की आवाजें आ रही थी... एक सहपाठी मिला और बोला... भाई जल्दी चलो...वो पगला अपना हाथ काट दिया है... हम बिना कुछ सोचे समझे एकदम दौड़ पड़े... और कमरे मैं जाकर देखा तो पगला हाथ में चाकू लिए खड़ा है... 5-7 छात्र उसके आसपास खड़े हैं... लेकिन पास जाने कि हिम्मत नहीं कर पा रहे थे... क्योंकि पगला चाकू की नोंक उनके तरफ करके कह रहा था कि... साला कोई पास नहीं आना नहीं तो घोंप देंगे... उसी बीच हम बिना कुछ सोचे समझे घुस गये और पगले के हाथ से चाकू छीन कर दो लप्पड लगा दिए... हाथ में रूमाल बाँध कर दौड़ पड़े अस्पताल की तरफ...
रास्ते में हमारी मित्र मोहतरमा मिल गई... उस अफरा तफरी में उनके सवाल का जवाब नहीं दे पाया... तो उन्हें लगा कि उनको नजरअंदाज किया है...
खैर अस्पताल में जब पगले से सवाल किया गया कि कैसे लगा तो... उसी बनारसी लहजे में उसने जवाब दिया... कि हम सुसाइड अटेम्पट किए है... वो नर्स और हम भी पगले को भौंचक होकर देखते रहे... तभी हमारे निरीक्षक महोदय ने प्रवेश किया... और हमें वहाँ से बाहर भेज दिया गया... और पगले को एम्बुलेंस में भर कर बड़े अस्पताल ले जाया गया... शाम तक उसके सलामत होने की खबर हमें मिल चुकी थी... हमारी जान में जान आई...
खैर अस्पताल में जब पगले से सवाल किया गया कि कैसे लगा तो... उसी बनारसी लहजे में उसने जवाब दिया... कि हम सुसाइड अटेम्पट किए है... वो नर्स और हम भी पगले को भौंचक होकर देखते रहे... तभी हमारे निरीक्षक महोदय ने प्रवेश किया... और हमें वहाँ से बाहर भेज दिया गया... और पगले को एम्बुलेंस में भर कर बड़े अस्पताल ले जाया गया... शाम तक उसके सलामत होने की खबर हमें मिल चुकी थी... हमारी जान में जान आई...
आगे की कहानी अगले भाग में...........
यह था कहानी का दूसरा हिस्सा | आपको यह कहानी कैसी लगी बताइयेगा जरुर , जल्द ही मिलेगे कहानी के अगले पड़ाव पर |
पहला भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 1
तीसरा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 3
चौथा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 4
पांचवा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 5
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