कालेज के तीन साल भाग 5


नमस्कार मित्रो !

हम पढ़ रहे  है  देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के छात्र  गौरव कलौनी की लिखी कहानी जिसका नाम है ,  कालेज के तीन साल | यह कहानी वास्तिविक है  उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के  तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है |
अब तक  हमने पढ़ा कैसे गौरव ने अपने कालेज का सफ़र शुरू किया जिसमे कुछ परेशानी तो हुई लेकिन बहुत कुछ सिखने को मिला | उसकी मुलाकात कुछ दोस्तों से हुइ जिन्होंने उसे कभी अकेला न होने दिया| वह एक सफल शुरुआत की ओर अग्रसर था | मुलाकातो के उस दौर में कुछ और दोस्तों का मिलना हुआ | साथ ही कुछ लोगो से अनबन भी हुई लेकिन एक ऐसा पल भी उनकी जिन्दगी में आया जिसने उन्हें दीवाना बना दिया | और उनकी दोस्ती की लिस्ट में कुछ अन्य नाम जुड़े जो थे तो अनजाने होने के बाद भी पारिवारिक लेकिन लग रहे थे | उन्होंने अपने प्रिय खेल को भुनाते हुए नये खेल को अपने जीवन में उतारा, नियमित रूप से अभ्यास करने लगे | जिस दिन उनका परीक्षा परिणाम आया वह हैरान रह गये जहा एक तरफ 65 % वाला खुश है तो कोई 80 % लाकर भी दुखी है | 1 – 2 % को लेकर मित्रता में आतंरिक दरार पढ़ती दिख रही थी | जो होना है वो तो होगा इस उद्देश्य के साथ वे आगे पढ़ रहे थे शेष कहानी आगे......

पहला भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 1 
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अब आगे......

हँसते खेलते हुए हमारी जिंदगी सही से गुजर हो रही थी... दो वक्त का खाना... रहने को छत... और समय व्यतीत करने को कुछ अच्छे दोस्त...
जीवन में शांति थी... या शायद आने वाले तुफान से पहले का सन्नाटा था... अपने बारे में बतायें तो... हमारी जिंदगी में जब कुछ नहीं होता तो बहुत समय तक कुछ नहीं होता और जब होता है तो सब एक साथ होता है...


जब भी हम लोगों से घिरे होते तो खुश रहते थे... या यूँ कहें कि खुश होने का दिखावा करते थे... परंतु जब कोई क़रीब ना होता तो हम लगा लेते अपनी कुर्सी को अपने कमरे के छज्जे में... और घूरते रहते विशाल पहाड़ों के पीछे  डूबते हुए सूर्य को... और खुद से सवाल करते रहते कि कर क्या रहा है भाई तू? यही था तेरा उद्देश्य? खुश है अपने इस निर्णय से?
और यकीन मानिये जवाब हमेशा ही नकारात्मक मिलता... क्योंकि हमें हमारा पतन होता दिख रहा था... पतन हमारी बोल-चाल का... पतन हमारे उठने-बैठने के तरीके का... पतन हमारे सामान्य ज्ञान का... हमारे खेल का पतन... कुल मिला कर बहुत कुछ ऐसा था जो निरंतर है हमारे मनोबल को तोड़ रहा था...
कहीं न कहीं हमारी पुरानी दिनचर्या ने हमें अब भी जकड़ा हुआ था...और हमारी बंजारा मिज़ाज़ी हमें बार बार याद आकर हमारे जीवन में विनाशकारी लहरों को जन्म दे रही थी...
जब भी हम छज्जे पर बैठे होते तो शाम को अक्सर द्विवेदी जी आ जाते और अपने मजाकिया लहजे में कहते... जान रहे हो मुकुल, ब्रेकअप कल हो गया है और उनका यह कहना हमारे चेहरे पर एक मंद सी मुस्कान लाने को काफी होता था...लेकिन उस मुस्कान के अंदर कहीं न कहीं एक तुफान उमड़ रहा था... अवसाद और हीनता का तुफान... जो लगातार हमारे मन-मस्तिष्क  को घेरता जा रहा था और हमें अपने भंवर में घसीटता जा रहा था...
जिसका परिणाम यह हुआ कि हम अक्सर चिढ़- चिढ़े से रहने लगे... अपने जीवन में हुए सकारात्मक परिवर्तनों की जगह अब हम सिर्फ नकारात्मक परिवर्तनों को ही तवज्जों दे रहे थे... और जिस तरह की परिस्थिति थी उस परिस्थिति में ऐसा होना स्वाभाविक भी है... और दूसरी बात इस तरह की परिस्थिति पूर्व में  हमारे जीवन में कभी नहीं आयी थी... 


कहानी का 5 भाग आने में कुछ विलंब हुआ जिसके लिए हमें खेद है, साथ ही अब 
हम नहीं मिल पाएंगे किसी कारणवश यह कहानी यहीं रोकी जा रही है। आपके प्यार और सुझाव के लिए। धन्यवाद
आपका गौरव

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Comments

  1. Still waiting for next Parts Brother. Please request the author to write and Publish it brother.

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