कालेज के तीन साल भाग 1

नमस्कार मित्रो आज  हम पढ़ते है  देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार के छात्र  गौरव कलौनी की लिखी कहानी जिसका नाम है ,  कालेज के तीन साल | यह कहानी वास्तिविक है  उन्होंने अपने ग्रेजुएशन के  तीन वर्षो का अनुभव शेयर किया है | आइये शुरू करते है....

एक मस्त-मलंग सा, अनगढ़ सा बालक 3 साल पहले एक अंजान से सफर पर निकल पड़ा था | सफर कुछ ऐसा जो बिलकुल ही भिन्न था | रहन-सहन में भिन्न... बोल-चाल में भिन्न... खान-पान में भिन्न... हर प्रकार से उसकी पिछली जिन्दगी से भिन्न होने वाला था ये सफर.. या यूँ कहें कि एक आजाद आवारा परिंदे को जंजीरों  में कैद किया जाने वाला था... वो कैद जो किसी ने नहीं चुनी उसके लिए बल्कि उसने उन जंजीरों को स्वयं से चुना था... या हो सकता है कि कहीं बहुत सूक्ष्म में कोई अंजान सी शक्ति उसे उस सफर पर खींचती चली जा रही थी... उसकी समझ इतनी विकसित नहीं थी कि वह यह सब समझ पाता....

वहाँ जाने के बाद माँ-बाप का परेशान चेहरा देख कर (माँ-बाप परेशान थे क्योंकि वे वाकिफ थे अपने बेटे के बंजारा मिज़ाज़ी से, वे सोच रहे थे कि उनका बेटा इस नये माहौल में कैसे समायोजन करेगा?) वो एक मानसिक द्वन्द में पड़ गया... कुछ दिन तो वह खुद से सवाल करता रहा... शक करता रहा अपने चुनाव पर... विचार करता रहा वापस लौट जाने को लेकर... मुड़ कर वापस उसी दुनियाँ में जाने को जहाँ से उसने शुरूआत की थी... इसी बीच एक दूसरे व्यक्ति से उसकी मुलाकात हुई... एक समझदार सा परिपक्व सा... चेहरे पर घनी दाढ़ी... बोली एकदम ठेठ देशी... लेकिन उस बोली में  एक अपनापन समेटे हुए  मुकुल देव.. जिसने उसे इस नये माहौल में ढलना सिखाया... एक और व्यक्ति मिला इसी द्वंद्व से भरे वक्त में... छोटी कद काठी... बोली में मिठास... चेहरे पर अनंत मासूमियत...लहजे में कुछ झिझक शर्मीलापन... और इत्तेफाक ही था कि नाम में भी  शर्मा ही था...

दोनों के साथ उस यात्रा को प्रारंभ किया... दो-तीन महीने का समय लगा... हैल्लो से प्रणाम तक आने में... जीन्स से कुर्ते तक आने में... लेकिन सब सुचारू रूप से चलने लगा... कभी कभी वही बाहरी दुनियाँ अपनी ओर खींचती सी प्रतीत होती थी...लेकिन अब उसका मन उस नयी दुनियाँ में लग गया था... धीरे-धीरे कुछ और लोगों से जान-पहचान बढ़ने लगी...
इसी बीच एक और पागल और अनगढ़ सा व्यक्ति मिला... बनारस का रहने वाला... लहजे में वही बनारसी बोली...मेरे द्वारा  उसका नामकरण  किया गया पगला फाईल ...

मुकुल देव और शर्माजी के साथ रहते हुए कुछ मित्र और बने..........
मिश्रा जी जो कि पर्यावरण विज्ञान के छात्र थे और फोटोग्राफी के शौकीन थे... शर्मा जी इतिहास के छात्र और लाजवाब मुस्कुराहट के मालिक... और खरी जी मनोविज्ञान के विशेषज्ञ और मजाकिया स्वभाव के व्यक्ति... इन सब के साथ मिल कर अब यही दुनियाँ भाने लगी थी... अभी कुछ और व्यक्तियों से मुलाकात होना बचा था|शेष अगले भाग में...........

कहानी का अगला भाग पढने के लिए यह क्लिक करे :- कालेज के तीन साल भाग 2
तीसरा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:-  भाग 3
चौथा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:- भाग 4
पांचवा भाग पढने के लिए यहा क्लिक करे:-  भाग 5

यह था कहानी का पहला हिस्सा | आपको यह कहानी कैसी लगी बताइयेगा जरुर , आपके सुझाव  का इंतजार है |

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